योजना के तहत मिलता है 3 लाख रुपये तक का लोन आवेदन ऑनलाइन loan application online

loan application online आज का युग डिजिटल क्रांति का युग है। प्रतिदिन नई-नई तकनीकें हमारे जीवन में प्रवेश कर रही हैं, जो एक ओर जहां हमारे जीवन को सरल बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ वर्गों के लिए चुनौतियां भी खड़ी कर रही हैं।

विशेष रूप से, हमारे पारंपरिक शिल्पकार और कारीगर, जो पीढ़ियों से अपनी कला को संजोए हुए हैं, आज तकनीकी प्रगति के कारण अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। इस चुनौती को समझते हुए भारत सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की है – प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना।

यह योजना पारंपरिक कौशल धारकों के लिए एक नई आशा की किरण बनकर आई है। इसका मुख्य उद्देश्य उन कारीगरों और शिल्पकारों को सशक्त बनाना है, जो अपनी पारंपरिक विरासत को आधुनिक युग में भी जीवंत रखना चाहते हैं। सरकार ने इस योजना में 18 विभिन्न पारंपरिक व्यवसायों को शामिल किया है, जिसमें सुनार, लोहार, नाई, और चर्मकार जैसे परंपरागत व्यवसाय शामिल हैं।

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योजना का सबसे आकर्षक पहलू इसकी वित्तीय सहायता है। सरकार लाभार्थियों को 3 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान कर रही है, जो कि दो चरणों में दिया जाता है। इस ऋण की विशेषता यह है कि इस पर मात्र 5% की रियायती ब्याज दर लागू होती है, जो कि सामान्य बैंक ऋणों की तुलना में बहुत कम है। साथ ही, ऋण पर 8% तक की सीमा में सब्सिडी भी प्रदान की जाती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस ऋण के लिए किसी संपार्श्विक (कोलैटरल) की आवश्यकता नहीं होती, जो इसे और भी सुलभ बनाता है।

योजना की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह केवल वित्तीय सहायता तक ही सीमित नहीं है। इसमें कौशल विकास का भी विशेष ध्यान रखा गया है। लाभार्थियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, जो उन्हें आधुनिक बाजार की मांगों के अनुरूप अपने कौशल को विकसित करने में मदद करता है। यह प्रशिक्षण उन्हें न केवल अपनी पारंपरिक कला को संरक्षित करने में मदद करता है, बल्कि उसे आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने में भी सहायक होता है।

ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित ढंग से विभाजित किया गया है। प्रारंभ में, बेसिक ट्रेनिंग पूरी करने वाले लाभार्थी एक लाख रुपये तक का ऋण प्राप्त कर सकते हैं। यदि वे इस ऋण का सफलतापूर्वक उपयोग करते हैं और नियमित भुगतान करते हैं, तो उन्हें अतिरिक्त दो लाख रुपये का ऋण प्राप्त करने का अवसर मिलता है। पहले चरण के ऋण को 18 महीने की अवधि में चुकाना होता है, जबकि दूसरे चरण के ऋण के लिए 30 महीने का समय दिया जाता है।

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इस योजना की एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि लाभार्थियों को अपने व्यवसाय में डिजिटल लेनदेन को अपनाना होगा। यह शर्त आधुनिक व्यावसायिक परिवेश में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में सहायक है। डिजिटल भुगतान का प्रयोग न केवल व्यवसाय को पारदर्शी बनाता है, बल्कि इससे ग्राहक आधार भी विस्तृत होता है।

प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना का महत्व इस बात में निहित है कि यह भारत की समृद्ध पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास करती है, साथ ही इसे आधुनिक युग के अनुकूल बनाने में मदद करती है। यह योजना पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में सहायक है, जिससे वे अपनी कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचा सकें।

यह योजना भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में फैले कारीगरों और शिल्पकारों के लिए एक वरदान साबित हो रही है। इससे न केवल पारंपरिक कौशल का संरक्षण हो रहा है, बल्कि रोजगार सृजन में भी मदद मिल रही है। साथ ही, यह योजना भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

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प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना पारंपरिक कौशल और आधुनिक तकनीक के बीच एक सेतु का काम कर रही है। यह योजना भारत के पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों को डिजिटल युग में प्रासंगिक बनाए रखने का एक सराहनीय प्रयास है। इस प्रकार की पहल से न केवल हमारी पारंपरिक कलाएं जीवित रहेंगी, बल्कि वे आधुनिक अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान दे सकेंगी।

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